Saturday, January 2

मेरी आखरी घड़ी हैं

मेरी आखरी घड़ी हैं और इक आखरी ख़्वाहिश हैं
उनका आखरी दीदार हों बस ये इक नुमाईश हैं...

पलकें मिटनें से क़तरा रहीं; वो आएं और समझाएं इन्हें
ज़िन्दगी से टूट गयीं; बस उन्हीं से बंदिश हैं ...

वक़्त ने कहाँ था की रूक जाऊंगा दो पल
मैंने कहाँ टी गुज़र जा; ये उनकी गुज़ारिश हैं...

बड़े सजके सज़दे किए औरो के लिए उन्होनें
मुझसे परे हों गएं यहीं अपनी रंजिश हैं...

मेरे क़दीम इश्क़ की मुद्दतें पूरी हों गयीं
यहीं वज़ह हैं की उनके महोल्ले में आतिश हैं...

सावन हिज्रत कर गया तो बरखा की उम्मीद थीं
लौटकर ख़िज़ाँ आयी ये फिजाँ की साज़िश हैं...

2 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 30 सितम्बर 2017 को लिंक की जाएगी ....
    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
    

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